झारखंड में प्राथमिक स्‍कूलों के बंद रहने का वर्ल्‍ड रिकार्ड बना, स‍चेत हो जाए सरकार : डॉ ज्‍यां द्रेज

रांची: जाने माने अर्थशास्‍त्री डॉ ज्‍यां द्रेज ने कोविड-काल में झारखंडी गरीब बच्‍चों की बदहाल शिक्षा व्‍यवस्‍था पर चिंता व्‍यक्‍त करते हुए राज्‍य के मुख्‍यमंत्री हेमन्‍त सोरेन को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में डॉ द्रेज ने कहा है कि झारखंड में प्राथमिक स्‍कूलों के बंद रहने का एक वर्ल्‍ड रिकार्ड बन गया है। कोविड महामारी के कारण यहां के स्‍कूल दो वर्षों तक बंद रहे। हालात यह हैं कि जहां 2011 की जनगणना में आठ से 12 साल के 90% बच्‍चे साक्षर होने की दहलीज पर थे और 2020 तक यह संख्‍या शत-प्रतिशत हो जाती, वहीं अब बड़ी संख्‍या में बच्‍चे फिर से निरक्षरता की दहलीज पर हैं। डॉ द्रेज ने खास तौर गरीब परिवारों के उन बच्‍चों की ओर इशारा किया है जिनके परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे ऑनलाइन पढ़ाई की व्‍यवस्‍था करवा सकें। अपने पत्र में डॉ द्रेज ने सरकार के समक्ष समाधान भी रखा है। वह कहते हैं कि हमें तमिल नाडू से सीख लेते हुए उनकी ITK योजनानुसार झारखंड में भी फिर से साक्षरता अभियान चलाने के लिए बजट में प्रावधान करना चाहिए। पढ़ें डॉ ज्‍यां द्रेज की वह चिठ्ठी नीचे.. 

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(अंग्रेजी से हिन्‍दी में अनुदित)

श्री हेमंत सोरेन
मुख्यमंत्री
झारखंड सरकार
माननीय मुख्यमंत्री,
बेहद निराशा के साथ बताना चाहूंगा कि मैं आज पूर्व बजट परामर्श में भाग लेने में सक्षम नहीं हो पाउंगा। क्योंकि मैं अभी अभी कोविड से उबर रहा हूं। मैं इस बैठक में भाग लेने के लिए उत्सुक था, खासकर झारखंड में प्राथमिक शिक्षा की विनाशकारी स्थिति पर आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए। आज के संकट का सामना आर्थिक और स्‍वास्‍थ्‍य संकट से भी बुरा है। यह स्कूली शिक्षा का संकट है। जब महामारी कम हो जाती है, तो अर्थव्यवस्था को चुनने की संभावना है और वयस्क जल्द ही अपने सामान्य जीवन में अपेक्षाकृत वापस आ जाएंगे। लेकिन बच्चे अपने पूरे जीवन के लिए कीमत चुकाते हैं।
झारखंड में प्राथमिक विद्यालयों का सबसे लंबे समय तक निरंतर बंद होने का विश्व रिकॉर्ड है - लगभग दो साल। चंद विशेषाधिकार प्राप्त बच्चों की एक लघु संख्‍या ही इस दौरान ऑनलाइन अध्ययन जारी रखने में सक्षम रही है।
ऑनलाइन शिक्षा गरीब बच्चों के लिए काम नहीं करती है। उनमें से ज्यादातर को स्कूलिंग प्रणाली द्वारा लगभग दो साल तक यूं ही छोड़ दिया गया है। इस लंबे समय तक स्कूली शिक्षा प्रणाली से बहिष्कार ने बच्चों के बीच निरक्षरता को जन्‍म दिया  है। 2011 की जनगणना के समय, 8-12 साल के आयु वर्ग में साक्षरता दर झारखंड में 90% के आसपास थी। 2020 तक, उस आयु वर्ग के अधिकांश बच्चे साक्षर होना चाहिए था। लेकिन आज, जब हम उस उम्र के बच्चों, गरीब आदिवासी और ग्रामीण झारखंड के दलित परिवारों, के बीच सर्वेक्षण करते हैं, तो हम पाते हैं कि उनमें से अधिकतर ने एक साधारण वाक्य को पढ़ने की भी क्षमता खो दी है। यह जानकारी सितंबर 2021 में जारी स्कूल शिक्षा पर आपातकालीन रिपोर्ट के निष्कर्षों में से एक था।
जब स्कूल अंततः फिर से खोलते हैं, तो इनमें से कई बच्चे सीखने और लिखने और स्कूल के जीवन के अन्य पहलुओं का आनंद लेने की अपनी क्षमता को पुनर्प्राप्त करेंगे। लेकिन कई लोग नहीं करेंगे - वे ड्रॉप-आउट हो जाएंगे।
इस हालात में मुझे लगता है कि झारखंड को अगले दो वर्षों में प्राथमिक-विद्यालय के बच्चों के लिए बड़े पैमाने पर साक्षरता अभियान की योजना बनाने की आवश्यकता होगी। इस अभियान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होगा।  झारखंड में इस अभियान को सावधानीपूर्वक विचार की आवश्यकता है। शायद कुछ प्रेरणा तमिलनाडु की "आईटीके" योजना से ली जा सकती है। जहां,अभियान स्थानीय शिक्षित युवाओं (विशेष रूप से) को संगठित करने पर आधारित है (महिलाएं, आदिवासी और दलित), यह अपेक्षाकृत कम लागत पर हर गांव तक पहुंच सकती है, और इन युवाओं को कुछ पूरक आय प्रदान करती है। शिक्षकों का समर्थन, ज़ाहिर है, वह भी आवश्यक है।
मैं आपको इस प्रस्ताव पर विचार करने के लिए अपील करता हूं और इसे सुनिश्चित करने के लिए कि आगामी बजट में पर्याप्त प्रावधान किया जाना जरूरी है। कहने की जरूरत नहीं है, मैं यह भी उम्मीद कर रहा हूं कि स्कूल जल्द ही फिर से खुल जाएंगे।
सादर,
ज्‍यां द्रेज (विज़िटिंग प्रोफेसर, अर्थशास्त्र विभाग, रांची विश्वविद्यालय)

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world record of closer of primary schools in Jharkhand: Dr. Jean Dreze